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यस्ये॑क्ष्वा॒कुरुप॑ व्र॒ते रे॒वान्म॑रा॒य्येध॑ते । दि॒वी॑व॒ पञ्च॑ कृ॒ष्टय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasyekṣvākur upa vrate revān marāyy edhate | divīva pañca kṛṣṭayaḥ ||

पद पाठ

यस्य॑ । इ॒क्ष्वा॒कुः । उप॑ । व्र॒ते । रे॒वान् । म॒रा॒यी । एध॑ते । दि॒विऽइ॑व । पञ्च॑ । कृ॒ष्टयः॑ ॥ १०.६०.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:60» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य व्रते) जिस शासक के शासन कर्म में (इक्ष्वाकुः) मीठे रस भरे गन्ने की भाँति बोलनेवाला मधुर उपदेष्टा शिक्षामन्त्री (रेवान्) प्रशस्त धनवाला अर्थमन्त्री (मरायी) शत्रुओं को मारनेवाला सेनाध्यक्ष-रक्षामन्त्री (उप-एधते) समृद्ध होता है, उसके (पञ्च कृष्टयः) पाँच प्रकार के-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद, प्रजाजन (दिवि-इव) जैसे सूर्य के आश्रय में रश्मियाँ-किरणें प्रकाशमय और सबल होती हैं, ऐसे सबल हो जाते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - जिस राजा के शासन में मधुरोपदेष्टा शिक्षामन्त्री, प्रशस्त धनवान् अर्थमन्त्री और शत्रुओं को मारनेवाला सेनाध्यक्ष समृद्धि पाते हैं, उसकी पाँचों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद प्रजाएँ और ज्ञानीजन, जैसे सूर्य के आश्रय में रश्मियाँ प्रकाशवाली और सबल होती हैं, ऐसे सबल होते हैं ॥४॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य व्रते) यस्य शासकस्य शासनकर्मणि (इक्ष्वाकुः) इक्षुरिव वदति यः स मधुरोपदेष्टा शिक्षामन्त्री तथा (रेवान्) धनवान् अर्थमन्त्री च (मरायी) शत्रूणां मारयिता रक्षामन्त्री (उप-एधते) समृद्धो भवति तस्य (पञ्चकृष्टयः) पञ्चप्रजाजनाः ‘कृष्टयः-मनुष्यनाम” [निघ० २।३] (दिवि-इव) सूर्ये, सूर्याश्रये यथा रश्मयः प्रकाशमयः सबलाश्च भवन्ति ‘अत्र लुप्तोपमानवाचकालङ्कारः’ तथा शासकाश्रये कृष्टयः-प्रजाजनाः, ज्ञानिनश्च सबला भवन्ति ॥४॥